लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2789
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- वैवाहिक समायोजन से क्या तात्पर्य है ? विवाह के पश्चात् स्त्री एवं पुरुष को कौन-कौन से मुख्य समायोजन करने पड़ते हैं ? 

अथवा
निम्न वैवाहिक समायोजनों को संक्षेप में समझाइए-
(1) जीवन साथी के साथ समायोजन।
(2) यौन सम्बन्धी समायोजन।
(3) जनकता अभिभावकत्व से समायोजन। 

अथवा
वैवाहिक समायोजन पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. वैवाहिक समायोजन का अर्थ |
2. यौन सम्बन्धी समायोजन।
3. एकांकी जनकता ।

उत्तर -

स्त्री-पुरुष एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, अर्थात् गृहस्थ रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं। एक के भी न होने पर गाड़ी रुक जाती है। उसी प्रकार स्त्री-पुरुष में से एक के भी न होने पर वैवाहिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। अतः वैवाहिक जीवन चलाने के लिए स्त्री-पुरुष दोनों का ही होना अनिवार्य है।

स्त्री-पुरुष विवाह के पश्चात् गृहस्थ जीवन का निर्वाह करते हैं, अपने बच्चों का लालन-पालन करते हैं तथा सुख-दुःख में एक-दूसरे के साथी होते हैं। दोनों में प्रेम, त्याग तथा सहानुभूति की भावना होती है। एक-दूसरे के प्रति ये भाव होते हैं तभी पारिवारिक जीवन सुखी हो सकता है और पूरी जिन्दगी दोनों पति-पत्नी साथ-साथ रहकर व्यतीत कर सकते हैं। सुखी - शान्तिपूर्ण जीवन ही वैवाहिक जीवन का सार है।

वैवाहिक समायोजन का अर्थ
(Meaning of Marriage Adjustment)

वैवाहिक समायोजन का अर्थ है कि विवाह के बाद पति-पत्नी एक-दूसरे की रुचि, स्वभाव को जानकर उसके अनुरूप ही कार्य करें और सम्बन्धों को प्रेमपूर्ण बनाये रखें। एक-दूसरे के लिए त्याग व सहयोग की भावना का विकास हो। इसे ही वैवाहिक जीवन कहते हैं। यदि वैवाहिक जीवन अनुकूल नहीं होता तो दोनों का जीना दूभर हो जाता है, आपस में संघर्ष बना रहता है, हमेशा एक-दूसरे की बात काटते रहते हैं, किन्तु यदि वैवाहिक जीवन अनुकूल है तो दोनों का जीवन सुखी शान्तिपूर्ण बीतता है।

वैवाहिक समायोजन सर्वाधिक कठिन समायोजन होता है, जो नव-दम्पत्ति को करना पड़ता है।

यद्यपि विवाह के बाद अनेक समायोजन सम्बन्धी समस्याएँ होती हैं, किन्तु इनमें से निम्नलिखित समायोजन महत्वपूर्ण हैं-

(1) जीवन साथी के साथ समायोजन - वैवाहिक जीवन में सबसे बड़ी समायोजन की समस्या 'जीवन साथी के साथ समायोजन' की होती है। पारस्परिक सम्बन्ध विवाह में उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जितना कि मित्रता में तथा व्यावसायिक सम्बन्धों में। फिर भी विवाह के मामले में पारस्परिक सम्बन्धों में समायोजन अधिक कठिन होता है, जबकि सामाजिक या व्यावसायिक जीवन में इतना कठिन नहीं होता।

पुरुष तथा स्त्री दोनों के ही पूर्व के जितने अधिक पारस्परिक सम्बन्धों के अनुभव होते हैं, उतनी ही अधिक उनकी सामाजिक अन्तर्दृष्टि विकसित होगी तथा दूसरों के साथ जितनी अधिक सहयोग करने की भावना तथा इच्छा होगी, उतना ही अधिक अच्छा समायोजन वे एक-दूसरे के साथ करने के योग्य होते हैं।

वे पति तथा पत्नियाँ जिनमें स्नेह या प्यार को अभिव्यक्त न करने की आदत होती है विवाह के बाद ऊष्ण तथा घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करने में कठिनाई अनुभव करते हैं, क्योंकि दोनों में से प्रत्येक अपने साथी के व्यवहार को परवाह न करने वाला समझता है।

जिस प्रकार प्यार को प्रदर्शित या अभिव्यक्त करने की योग्यता तथा इच्छा का होना आवश्यक है, उसी प्रकार बातचीत अथवा सम्प्रेषण की योग्यता एवं इच्छा का होना भी आवश्यक बाल्यावस्था तथा किशोरावस्था के दौरान जो अपने साथियों एवं मित्रों से बातचीत करते हैं, सम्प्रेषण करते हैं, उनकी तुलना में अधिक लोकप्रिय होते हैं, जो अपने में ही सीमित रहते हैं। ये वयस्क, जो दूसरों से सम्प्रेषण करना जानते हैं तथा जो ऐसा करने की इच्छा रखते हैं, वे वैवाहिक समायोजन में आने वाली अनेक जटिल गलतफहमियों को हटा देते हैं।

(2) यौन-सम्बन्धी समायोजन - वैवाहिक जीवन में दूसरी मुख्य समायोजन की समस्या है— यौन सम्बन्धी समायोजन। निर्विवाद रूप से विवाह में सर्वाधिक कठिन समायोजन होता है तथा यह वैवाहिक कलह या अनबन तथा दुख का कारण भी बन जाता है, यदि यौन-सम्बन्ध सुख सन्तुष्टिदायक ढंग से प्राप्त न हो सके तो आमतौर पर विवाहित युगल को इस समायोजन से सम्बन्धित प्राथमिक अनुभव अन्य समायोजनों की तुलना में बहुत कम होते हैं एवं वे यह समायोजन बिना संवेगात्मक तनाव के करने में असमर्थ हो जाते हैं।

भारत जैसे देशों में जहाँ विवाह के पूर्व यौन-सम्बन्धों को कोई मान्यता प्राप्त नहीं है तथा संस्कार वान परिवार के लड़के-लड़कियाँ इस प्रकार के सम्बन्ध विवाह पूर्व स्थापित भी नहीं करते हैं, फलस्वरूप विवाह के बाद 'यौन-सम्बन्धी समायोजन' अधिक कठिन होता है। इसके विपरीत पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति में 'Dating Pattern' के एक भाग के रूप में किशोर लड़के-लड़कियाँ यौन सम्बन्ध भी स्थापित कर लेते हैं। अतः ऐसे किशोरों को विवाह के बाद इस प्रकार के समायोजन करने में आसानी होती है।

यौन-सम्बन्धी समायोजन को प्रभावित करने वाले अनेक तत्व होते हैं ये तत्व उन पुरुष एवं महिलाओं पर अधिक प्रभाव डालते हैं, जिनके विवाह पूर्व यौन-सम्बन्धी अनुभव नहीं है।

(3) जनकता या अभिभावकत्व से समायोजन (Adjustment to Parenthood) - कहा जाता है कि किसी वयस्क व्यक्ति के उत्तरदायित्व तथा परिपक्वता की महत्वपूर्ण कसौटी उसकी जनकता अथवा मातृत्व या पितृत्व होता है अर्थात् जब एक मनुष्य माता अथवा पिता की भूमिका को निभाता है तभी उसके अन्दर उत्तरदायित्व की भावना तथा परिपक्वता का विकास होता है। यह निर्विवाद सत्य है कि मातृत्व अथवा पितृत्व, सन्तुष्टिदायक भावनाओं या तृप्ति को साथ लेकर आता है, किन्तु इसको जीवन का एक संकटकाल भी कहा जा सकता है, क्योंकि यह व्यक्ति की अभिवृत्तियों, मूल्यों तथा भूमिकाओं में बहुत महत्वपूर्ण परिवर्तन कर देता है।

परिवार में नये बालक के जन्म लेते ही परिवार अस्थायी तौर पर अस्त-व्यस्त हो जाता है तथा परिवार के सभी सदस्य अलग-अलग स्तर पर तनाव तथा दबाव में रहते हैं। यद्यपि परिवार में बच्चों का जन्म खुशियाँ लेकर आता है किन्तु प्रत्येक बच्चे के जन्म के साथ ही कुछ कठिन समय या संकट भी आ जाता है, विशेष रूप से जब परिवार में प्रथम शिशु का जन्म होता है, क्योंकि माता-पिता दोनों ही अपनी इस नई भूमिका के लिए स्वयं को अपर्याप्त समझते हैं। कभी-कभी दोनों ही जनकता से सम्बन्धित बहुत रूमानी धारणा रखते हैं एवं सामाजिक तथा आर्थिक सुख-सुविधाओं का अभाव बच्चे के जन्म लेने पर उन्हें घेरने लगता है, साथ ही कभी-कभी कुछ पति-पत्नी के जीवन में बच्चा आने-जाने पर उसका प्यार एवं निकटता कम हो जाती है, आदि कुछ ऐसे कारण हैं जो शिशु के जन्म लेने पर पति-पत्नी को विक्षिप्त कर देते हैं।

यद्यपि शिशु के जन्म लेने पर पति तथा पत्नी दोनों की समायोजन करने की आवश्यकता होती है क्योंकि अब उनकी भूमिका तथा जीवन-शैली में अत्यधिक परिवर्तन आ जाता है, किन्तु माता को अधिक समायोजन करना पड़ता है, क्योंकि शिशु की सम्पूर्ण देखभाल तथा शौच कराने आदि की जिम्मेदारी माता को ही पूर्ण करनी होती है। शिशु, अक्सर दिन में सोते हैं और रात्रि में रोते हैं, तब वही अपने बच्चे को सम्भालती है. इस प्रकार उसकी दिनचर्या भी बदल जाती है. इस नई दिनचर्या की नई भूमिका में स्त्री को बहुत अधिक समायोजन करना पड़ता है। उसकी इस भूमिका (मातृत्व) में उसे परिवार के अन्य सदस्यों का सहयोग प्रायः नहीं के बराबर ही मिलता है।

जबकि पुरुष अपनी भूमिका में, पिता बनने पर आमूल परिवर्तन नहीं करते हैं, अनेक पति अपनी पत्नी के प्रति बहुत कम 'Sexually responsiars' होकर अपनी भूमिका के प्रति मोहभंग को प्रदर्शित करते हैं। साथ ही उन्हें आर्थिक दबाव की चिन्ता रहती है तथा उनमें माता शिशु के सम्बन्धों को लेकर क्रोध की भावना भी रहती है। इस प्रकार की प्रतिकूल अभिवृत्तियाँ, पुरुष के अभिभावकत्व की अभिवृत्ति के लिए तथा वैवाहिक सहयोग के लिए विनाशकारी होती है।

ऐच्छिक सन्तानहीनता है

यह एक परम्परागत मान्यता है कि प्रत्येक स्त्री को 'माँ' होना चाहिए तथा बहुत अधिक संख्या में बच्चों का होना एक पुरुष के 'पौरुष' का सहज प्रमाण होता है। भारत में मोक्ष की प्राप्ति के लिए पुत्र का जन्म होना अनिवार्य माना जाता है तथा निःसन्तान दम्पत्ति विशेष रूप से स्त्री को अच्छी तथा सम्मानजनक नजरों से नहीं देखा जाता है। 'बाँझ' होने का दर्द, उस स्त्री से ज्यादा कौन महसूस कर सकता है, जिसकी गोद सूनी है। हमारे देश में तो सन्तान प्राप्ति हेतु दूसरा विवाह भी कर लिया जाता है, किन्तु विदेशों में आजकल ऐसे दम्पत्तियों की संख्या बढ़ती जा रही है, जो अपनी इच्छा से सन्तानहीन हैं। यह तथ्य सभी सामाजिक आर्थिक स्तर पर सत्य है किन्तु उच्च शिक्षित लोगों के समूह के सन्दर्भ में यह बात विशेष रूप से सत्य है।

पति - पत्नी द्वारा सन्तान उत्पन्न न करने के अनेक कारण हो सकते हैं किन्तु सबसे मुख्य कारण उन लोगों को उभरता हुआ रोचक कैरियर होता है जिससे वे समझते हैं कि बच्चे के आ जाने से वह अवरुद्ध हो जाएगा। साथ ही दम्पत्तियों ने जो अपने लिए जीवन शैली स्थापित की है तथा अपने बच्चों को वे अच्छा जीवन दे सकने की अनिच्छा, अन्तर्जातीय अथवा अन्तर्वर्ण विवाह तथा कम आमदनी का भय, उन्हें बच्चों को जन्म देने से रोकता है।

कुछ दम्पत्ति स्वेच्छा से अपने परिवार के सदस्यों की संख्या को सीमित कर देते हैं। अनेक दम्पत्तियों का यह अनुभव होता है कि इकलौता बालक परिवार की व्यवस्थाओं को ज्यादा भंग नहीं करता है, जबकि दो या अधिक सन्तानें परिवार को छिन्न-भिन्न या अस्त-व्यस्त कर देती हैं। अतः आजकल एक ही बच्चे की अवधारणा ने जन्म ले लिया है। कभी-कभी स्त्रियाँ अपनी नौकरी या व्यवसाय को छोड़ना नहीं चाहती हैं तथा अपनी व्यक्तिगत एवं सामाजिक रुचियों को भी बनाए रखना चाहती हैं, फलस्वरूप वे अपने परिवार को और अधिक नहीं बढ़ाना चाहती हैं। उन्हें एक ही सन्तान से भी तो अभिभावकत्व ( Parenthood) का सुख एवं सन्तुष्टि प्राप्त हो जाती है।

एकाकी जनकता

ऐसे अनेक परिवार देखे जाते हैं जिनमें बच्चों की देखभाल तथा पालन-पोषण हेतु केवल एक अभिभावक होता है क्योंकि दोनों में से किसी एक ही मृत्यु हो जाती है। आजकल एक अभिभावक परिवारों की संख्या बढ़ती जा रही है, इसके लिए दो कारण उत्तरदायी हैं— प्रथम जो यह कि अधिकांश One - Parent Families का कारण विवाह विच्छेद होना है। बजाए किसी एक अभिभावक की मृत्यु के तथा द्वितीय यह है कि आजकल अवैध सन्तानों को भी जन्म दिया जाता है एवं माता द्वारा उसका पालन-पोषण किया जाता है। अविवाहित लड़कियों में माता बनने का साहस उत्पन्न हो गया है, यद्यपि भारत जैसे देशों में ऐसे प्रकरणों की संख्या बहुत कम है।

One Parent Family का एक कारण है कि हमारे यहाँ प्रायः माता की मृत्यु के पश्चात् पिता अपने बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी या तो स्वयं निभाते हैं अथवा अपनी माता या अन्य महिला सम्बन्धी की सहायता से बच्चों का पालन-पोषण कर लेते हैं। कई बार विधुर पुरुष अपने बच्चों की ही खातिर पुनर्विवाह भी नहीं करते हैं। यदि परिवार में विधुर व्यक्ति की माता या महिला सम्बन्धी नहीं हैं तो ये पुरुष अपनी नौकरी अथवा व्यवसाय के साथ-साथ बच्चों की देखभाल का उत्तरदायित्व भी पूरा करते हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- विकास सम्प्रत्यय की व्याख्या कीजिए तथा इसके मुख्य नियमों को समझाइए।
  3. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में अनुदैर्ध्य उपागम का वर्णन कीजिए तथा इसकी उपयोगिता व सीमायें बताइये।
  4. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में प्रतिनिध्यात्मक उपागम का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में निरीक्षण विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  6. प्रश्न- व्यक्तित्व इतिहास विधि के गुण व सीमाओं को लिखिए।
  7. प्रश्न- मानव विकास में मनोविज्ञान की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- मानव विकास क्या है?
  9. प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाएँ बताइये।
  10. प्रश्न- मानव विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन की व्यक्ति इतिहास विधि का वर्णन कीजिए
  12. प्रश्न- विकासात्मक अध्ययनों में वैयक्तिक अध्ययन विधि के महत्व पर प्रकाश डालिए?
  13. प्रश्न- चरित्र-लेखन विधि (Biographic method) पर प्रकाश डालिए ।
  14. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में सीक्वेंशियल उपागम की व्याख्या कीजिए ।
  15. प्रश्न- प्रारम्भिक बाल्यावस्था के विकासात्मक संकृत्य पर टिप्पणी लिखिये।
  16. प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी है ? समझाइए ।
  17. प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से है। विस्तार में समझाइए।
  18. प्रश्न- नवजात शिशु अथवा 'नियोनेट' की संवेदनशीलता का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है ? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये ।
  20. प्रश्न- क्रियात्मक विकास की विशेषताओं पर टिप्पणी कीजिए।
  21. प्रश्न- क्रियात्मक विकास का अर्थ एवं बालक के जीवन में इसका महत्व बताइये ।
  22. प्रश्न- संक्षेप में बताइये क्रियात्मक विकास का जीवन में क्या महत्व है ?
  23. प्रश्न- क्रियात्मक विकास को प्रभावित करने वाले तत्व कौन-कौन से है ?
  24. प्रश्न- क्रियात्मक विकास को परिभाषित कीजिए।
  25. प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल के क्या उद्देश्य हैं ?
  26. प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास क्यों महत्वपूर्ण है ?
  27. प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं ?
  28. प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल की कमी का क्या कारण हो सकता है ?
  29. प्रश्न- प्रसवपूर्ण देखभाल बच्चे के पूर्ण अवधि तक पहुँचने के परिणाम को कैसे प्रभावित करती है ?
  30. प्रश्न- प्रसवपूर्ण जाँच के क्या लाभ हैं ?
  31. प्रश्न- विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन हैं ?
  32. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
  33. प्रश्न- शैशवावस्था में (0 से 2 वर्ष तक) शारीरिक विकास एवं क्रियात्मक विकास के मध्य अन्तर्सम्बन्धों की चर्चा कीजिए।
  34. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- शैशवावस्था में बालक में सामाजिक विकास किस प्रकार होता है?
  36. प्रश्न- शिशु के भाषा विकास की विभिन्न अवस्थाओं की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  37. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
  38. प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
  39. प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएँ क्या हैं?
  40. प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
  41. प्रश्न- शैशवावस्था में सामाजिक विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
  42. प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते है ?
  43. प्रश्न- सामाजिक विकास की अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं ?
  44. प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये ।
  45. प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं? समझाइये |
  47. प्रश्न- संवेगात्मक विकास को समझाइए ।
  48. प्रश्न- बाल्यावस्था के कुछ प्रमुख संवेगों का वर्णन कीजिए।
  49. प्रश्न- बालकों के जीवन में नैतिक विकास का महत्व क्या है? समझाइये |
  50. प्रश्न- नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से हैं? विस्तार पूर्वक समझाइये?
  51. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास क्या है? बाल्यावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है?
  53. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
  54. प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें ।
  55. प्रश्न- बाल्यकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
  56. प्रश्न- सामाजिक विकास की विशेषताएँ बताइये।
  57. प्रश्न- संवेगात्मक विकास क्या है?
  58. प्रश्न- संवेग की क्या विशेषताएँ होती है?
  59. प्रश्न- बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास की विशेषताएँ क्या है?
  60. प्रश्न- कोहलबर्ग के नैतिक सिद्धान्त की आलोचना कीजिये।
  61. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?
  62. प्रश्न- बालक के संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
  63. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की विशेषताएँ क्या हैं?
  64. प्रश्न- किशोरावस्था की परिभाषा देते हुये उसकी अवस्थाएँ लिखिए।
  65. प्रश्न- किशोरावस्था में यौन शिक्षा पर एक निबन्ध लिखिये।
  66. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
  67. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है एवं किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का उल्लेख कीजिए?
  68. प्रश्न- किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- नैतिक विकास से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था के दौरान नैतिक विकास की विवेचना कीजिए।
  70. प्रश्न- किशोरवस्था में पहचान विकास से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- किशोरावस्था को तनाव या तूफान की अवस्था क्यों कहा गया है?
  72. प्रश्न- अनुशासन युवाओं के लिए क्यों आवश्यक होता है?
  73. प्रश्न- किशोरावस्था से क्या आशय है?
  74. प्रश्न- किशोरावस्था में परिवर्तन से सम्बन्धित सिद्धान्त कौन-से हैं?
  75. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख सामाजिक समस्याएँ लिखिए।
  76. प्रश्न- आत्म विकास में भूमिका अर्जन की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- स्व-विकास की कोई दो विधियाँ लिखिए।
  78. प्रश्न- किशोरावस्था में पहचान विकास क्या हैं?
  79. प्रश्न- किशोरावस्था पहचान विकास के लिए एक महत्वपूर्ण समय क्यों है ?
  80. प्रश्न- पहचान विकास इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
  81. प्रश्न- एक किशोर के लिए संज्ञानात्मक विकास का क्या महत्व है?
  82. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था से आप क्या समझते हैं? प्रौढ़ावस्था में विकासात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- वैवाहिक समायोजन से क्या तात्पर्य है ? विवाह के पश्चात् स्त्री एवं पुरुष को कौन-कौन से मुख्य समायोजन करने पड़ते हैं ?
  84. प्रश्न- एक वयस्क के कैरियर उपलब्धि की प्रक्रिया और इसमें शामिल विभिन्न समायोजन को किस प्रकार व्याख्यायित किया जा सकता है?
  85. प्रश्न- जीवन शैली क्या है? एक वयस्क की जीवन शैली की विविधताओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- 'अभिभावकत्व' से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
  88. प्रश्न- विविधता क्या है ?
  89. प्रश्न- स्वास्थ्य मनोविज्ञान में जीवन शैली क्या है?
  90. प्रश्न- लाइफस्टाइल साइकोलॉजी क्या है ?
  91. प्रश्न- कैरियर नियोजन से आप क्या समझते हैं?
  92. प्रश्न- युवावस्था का मतलब क्या है?
  93. प्रश्न- कैरियर विकास से क्या ताप्पर्य है ?
  94. प्रश्न- मध्यावस्था से आपका क्या अभिप्राय है ? इसकी विभिन्न विशेषताएँ बताइए।
  95. प्रश्न- रजोनिवृत्ति क्या है ? इसका स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं बीमारियों के संबंध में व्याख्या कीजिए।
  96. प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान होने बाले संज्ञानात्मक विकास को किस प्रकार परिभाषित करेंगे?
  97. प्रश्न- मध्यावस्था से क्या तात्पर्य है ? मध्यावस्था में व्यवसायिक समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- मिडलाइफ क्राइसिस क्या है ? इसके विभिन्न लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
  100. प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
  101. प्रश्न- मध्य वयस्कता के कारक क्या हैं ?
  102. प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान कौन-सा संज्ञानात्मक विकास होता है ?
  103. प्रश्न- मध्य वयस्कता में किस भाव का सबसे अधिक ह्रास होता है ?
  104. प्रश्न- मध्यवयस्कता में व्यक्ति की बुद्धि का क्या होता है?
  105. प्रश्न- मध्य प्रौढ़ावस्था को आप किस प्रकार से परिभाषित करेंगे?
  106. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष के आधार पर दी गई अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
  107. प्रश्न- मध्यावस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- क्या मध्य वयस्कता के दौरान मानसिक क्षमता कम हो जाती है ?
  109. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60) वर्ष में मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक समायोजन पर संक्षेप में प्रकाश डालिये।
  110. प्रश्न- उत्तर व्यस्कावस्था में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं तथा इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रुकावटें आती हैं?
  111. प्रश्न- पूर्व प्रौढ़ावस्था की प्रमुख विशेषताओं के बारे में लिखिये ।
  112. प्रश्न- वृद्धावस्था में नाड़ी सम्बन्धी योग्यता, मानसिक योग्यता एवं रुचियों के विभिन्न परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
  113. प्रश्न- सेवा निवृत्ति के लिए योजना बनाना क्यों आवश्यक है ? इसके परिणामों की चर्चा कीजिए।
  114. प्रश्न- वृद्धावस्था की विशेषताएँ लिखिए।
  115. प्रश्न- वृद्धावस्था से क्या आशय है ? संक्षेप में लिखिए।
  116. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60 वर्ष) में हृदय रोग की समस्याओं का विवेचन कीजिए।
  117. प्रश्न- वृद्धावस्था में समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझाइए ।
  118. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
  119. प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
  120. प्रश्न- रक्तचाप' पर टिप्पणी लिखिए।
  121. प्रश्न- आत्म अवधारणा की विशेषताएँ क्या हैं ?
  122. प्रश्न- उत्तर प्रौढ़ावस्था के कुशल-क्षेम पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  123. प्रश्न- संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  124. प्रश्न- जीवन प्रत्याशा से आप क्या समझते हैं ?
  125. प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
  126. प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए।
  127. प्रश्न- अन्तर पीढी सम्बन्धों में तनाव के कारण बताओ।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book